Friday, March 31, 2023

Ram Navami - Ram Janam Katha ( The story of Bhgvan shree Ram's Birth)

 श्रीराम नवमी पर विशेष आलेख

श्रीराम  जन्म  कथा

 कोशल नामक एक विशाल भू-खंड का विस्तार सरयू नदी के तट तक था | वह भूमि हरी -भरी, सम्पन्न एवं अन्न से परिपूर्ण थी | अयोध्या नगरी का निर्माण राजा वैवस्वत मनु की इच्छा से किया गया था | नगर अपने भव्य भवन निर्माण कला, सुंदर एवं चौड़ी सड़कें जिनपर प्रतिदिन हाथियों के सूंड द्वारा सुगंधित जल छिड़के जाते थे के लिए प्रसिद्ध था | कहा जाता है कि स्वर्ग की अप्सराएं अपनी सुंदर विमानों में बैठकर वहाँ भ्रमण करतीं एवं पुष्पों की वर्षा करती थीं | वहाँ की प्रजा सुखी-सम्पन्न एवं संतुष्ट थी |       

                                             


अयोध्या के राजा यशस्वी महाराज दशरथ

               इसी विशाल और गौरवशाली राज्य के शासक महाराज दशरथ थे | वे एक राजर्षि ही नहीं अपितु महर्षि के रुप में भी प्रख्यात थे | वे प्रबल -से - प्रबल शत्रुओं का सामना करने में सक्षम थे, किन्तु राज्य विस्तार के लिए उन्होंने युद्ध का आह्वान कभी नहीं किया |

       अयोध्यावासी, " जैसा राजा वैसी प्रजा " के कथन को चरितार्थ करते थे | राजा तथा प्रजा के धार्मिक होने के कारण अयोध्या वैदिक सभ्यता का सजीव चित्र प्रस्तुत करती थी |यहाँ न कोई चोर था न कृपण, न उदण्ड और नाही नास्तिक | सभी लोग विनम्र तथा मृदुभाषी थे |                             

                             राजा के दुख का कारण

    इतने वैभवशाली साम्राज्य के स्वामी होकर भी राजा दशरथ दुखी थे | पुत्र न होने की पीड़ा उन्हें सर्प के समान दंश करती रहती थी |  अनेक अनुष्ठानों प्रयासों के पश्चात् भी वांछित फल प्राप्त न हुआ | बहुत सोच-विचार के बाद राजा ने अपने राजपुरोहित मुनि वशिष्ठसे अपने मन की बात कही , " हे ! द्विज श्रेष्ठ, अनेक यज्ञ -अनुष्ठानों के बाद भी मुझे पुत्रकी प्राप्ति नहीं हुई | बहुत सोच-विचारकर तथा आपकी अनुमति से मैंने अश्वमेध यज्ञ करवाने का निर्णय लिया है|" महाराज के इस प्रस्ताव को सभी पुरोहितों ने करतल ध्वनि सेस्वीकार किया |    

                    


अश्वमेध यज्ञ का आयोजन

अश्वमेध -यज्ञ का संपादन महर्षि ऋष्यश्रृंग तथा अन्य गुणी पंडितो और राज पुरोहित मुनि वशिष्ठ के देख रेख में हुआ | साथ- ही- साथ ऋषि ऋष्यश्रृंग ने पुत्रेष्टि यज्ञ संपादित करने का भी परामर्श दिया | यज्ञ समाप्ति के बाद पुत्रेष्टि यज्ञ के हवनकुंड से एक दिव्य पुरुष प्रकट हुए | उनके हाथ में खीर से भरा एक विशाल स्वर्णपात्र था | उस दिव्य पुरुष ने महाराज दशरथ से कहा," मैं भगवान विष्णु का दूत हूं |"  खीर का यह पात्र आपके द्वारा सम्पन्न किए गए दो यज्ञों का फल है | यह दिव्य खीर देवताओं के प्रसाद स्वरुप अपनी पत्नियों में बाँट दीजिए | अवश्य ही आपको इच्छित फल की प्राप्ति होगी |

                      "बिनु बिस्वास भगति नहिं तेहिं बिनु द्रवहिं न रामु |"

    ऐसा मन में विश्वास रख महाराज दशरथ ने प्रसन्नतापूर्वक दूत के हाथ से खीर भरा पात्र ले लिया और अपनी तीनों पत्नियों में बाँट दिया | निश्चित समय आने पर चैत्र मास के शुक्ल पक्ष नवमी के दिन रानी कौशल्या ने एक सुंदर बालक को जन्म दिया- 

                       "सुनि सिसु रुदन प्रिय बानी

                        संभ्रम चलि आई सब रानी|"

प्रसूति गृह से बच्चे के रोने की ध्वनि सुनते ही सभी रानियां उतावली होकर दौड़ पड़ीं |

                     " हरषित जँह तहँ धाईं दासी,

                       आनंद मगन सकल पुरबासी |"

खुशी के मारे दासियां इधर -उधर फिरने लगीं, सारे पुरबासी आनंदमग्न हो गए | "इक्ष्वाकु कुल भूषण पधारे हैं |" और नृत्य - संगीत से पूरा वातावरण गुंजायमान हो उठा | शीघ्र ही राजा दशरथ की कनिष्ठतम पत्नी रानी कैकेयी ने भगवान विष्णु की एक चौथाई शक्ति का प्रतिनिधित्व करने वाले एक पुत्र को जन्म दिया | दो दिवस पश्चात् रानी सुमित्रा को भी दो जुड़वा पुत्रों की माँ बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ | ये चारों शिशु एक - दूसरे से मिलते - जुलते, अत्यन्त तेजस्वी एवं आकर्षक थे |

      महाराज दशरथ के पुत्रों के जन्म पर देवताओं ने स्वर्ग से पुष्प वृष्टि की, गंधर्वो ने  मंगल गान के साथ भगवान विष्णु के धरती अवतरण का संकेत भी दिए |  

              " भए प्रगट कृपाला दीनदयाला कौशल्या हितकारी |

               हरषित महतारी मुनि मन हारी, अदभुत् रुप बिचारी ||"

 रानी कौशल्या, महाराज दशरथ, रानी कैकेयी, रानी सुमित्रा तथा अयोध्यावासियों के उत्साह एवं प्रसन्नता देखते ही बनता था |  इन दिव्य शिशुओं के दर्शन हेतु  राजमहल के द्वार तथा मार्गों पर विशाल जनसमूह उमड़ पड़ा |

               "सिया राम मय सब जग जानी

                करहुँ प्रणाम जोरि जुग पाणि ||"

                        जय श्री राम